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Rangoli

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Diwali is never complete without a rangoli. The colourful piece of art adds a festive flair. The tradition of making rangoli designs started centuries ago and over the years the art has seen a transformation. दीपावली के मौके पर हम अपने घरों को तरह-तरह से सजाते हैं. कुछ लोग पूरे घर को दीयों से रोशन करते हैं तो कुछ इलेक्ट्र‍िक लाइट्स से. पर जब तक घर को रंगोली से नहीं सजाया जाए कुछ अधूरापन नजर आता है.     रंगोली आप के  घर, कंपनी, मंदिर आदि की  खूबसूरती में चार-चांद लगा सकते हैं   चावल की रंगोली आप चाहें तो चावल की रंगोली भी बना सकते हैं, ये परंपरागत शैली है. चावल को हल्दी और सिंदूर की मदद से पीले और लाल रंग में रंग लें.        बीच में एक बड़ा दीया रखकर उसके चारों ओर चावल को एक एक डिजाइन में रखकर सुंदर रंगोली तैयार की जा सकती है.   रंग, फूल, रंगदार चीज़ें और कई बार तो जलते हुए दिये की मदद से घर की दीवारों या फिर ज़मीन पर सुंदर आकृतियां बनाई जाती हैं। वर्षों से भारत में त्यौहारों पर रंगोली बनाने का रिवाज़ चला आ रहा है।  अ

Rangoli

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रंगोली भारत की प्राचीन सांस्कृतिक परंपरा और लोक-कला है। अलग अलग प्रदेशों में रंगोली के नाम और उसकी शैली में भिन्नता हो सकती है लेकिन इसके पीछे निहित भावना और संस्कृति में पर्याप्त समानता है। इसकी यही विशेषता इसे विविधता देती है और इसके विभिन्न आयामों को भी प्रदर्शित करती है। इसे सामान्यतः त्योहार, व्रत, पूजा, उत्सव विवाह आदि शुभ अवसरों पर सूखे और प्राकृतिक रंगों से बनाया जाता है। इसमें साधारण ज्यामितिक आकार हो सकते हैं या फिर देवी देवताओं की आकृतियाँ। इनका प्रयोजन सजावट और सुमंगल है। इन्हें प्रायः घर की महिलाएँ बनाती हैं। विभिन्न अवसरों पर बनाई जाने वाली इन पारंपरिक कलाकृतियों के विषय अवसर के अनुकूल अलग-अलग होते हैं। इसके लिए प्रयोग में लाए जाने वाले पारंपरिक रंगों में पिसा हुआ सूखा या गीला चावल, सिंदूर, रोली,हल्दी, सूखा आटा और अन्य प्राकृतिक रंगो का प्रयोग किया जाता है परन्तु अब रंगोली में रासायनिक रंगों का प्रयोग भी होने लगा है। रंगोली को द्वार की देहरी, आँगन के केंद्र और उत्सव के लिए निश्चित स्थान के बीच में या चारों ओर बनाया जाता है। कभी-कभी इसे फूलों, लकड़ी या किसी अ